रविवार, 2 मई 2010

आपका सेवक हूँ बैंगन का नहीं, दो गधों का भार, नाट्य रूपांतरण

नाट्यरूपांतरण- डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा--

आपका सेवक हूँ बैंगन का नहीं

(मंच पर एक तरफ से घुसते हुए, अगर कोई हाथ से बजाने वाला वाद्य मिल जाए तो उसे बजाते हुए)

सूत्रधार-1 एक नगर में एक सेठ रहता था, नाम था उसका गरीबदास।
(गरीब दास का अपनी काल्पनिक मूछों पर ताव देते हुए मंच पर प्रवेश, अमीरों जैसे कपड़े पहने)

(मंच पर दूसरी तरफ से घुसते हुए, अगर कोई हाथ से बजाने वाला वाद्य मिल जाए तो उसे बजाते हुए)
सूत्रधार-2 उसका एक रसोइया था अमीरचंद।
(हाथ मे चमचा और खाना बनाने का बर्तन पकड़े नौकर जैसे कपड़ों में अमीरचंद का प्रवेश)
(प्रत्येक संवाद के बाद, दोनों थोड़ी-थोड़ी देर के लिए वाद्य बजाते रहेंगे)
सूत्रधार-1 अमीर चंद था खास, खाना जो भी बनाता उसमें होती थी प्यार की मिठास।
(बरतन में चमचा चलाते हुए अमीरचंद का मंच पर चक्कर काटना)
सूत्रधार-2 गरीब दास को अमीर चंद बहुत था भाता, पकवान वह उसके लिए चुन-
चुनकर नए रोज था बनाता।
(चटखारे लेकर खाने का अभिनय करता गरीबदास)
सूत्रधार-1 एक दिन की सुनो कहानी गरीबदास और अमीरचंद की जबानी।
(दोनों सूत्रधार मंच से बाहर चले जाते हैं, गरीब दास और अमीरचंद सामने आ जाते हैं।)
गरीबदास- आज बना रहे हो कौन सी भाजी।
अमीरचंद- जिसके लिए आप हों राजी।
गरीबदास- सुना मैंने बैंगन होता है कुछ खास। बनता बहुत ही स्वाद।
अमीरचंद- जी जनाब, बहुत ही खास। काटो तो लगता है कितना अच्छा। बीज होते हैं जैसे आकाश में तारों का गुच्छा।
गरीबदास- इसका मतलब बैंगन होता गुणवाला।
अमीरचंद- सिर देखिए होता है मुकुट राजाओंवाला, रंग भी तो देखिए कितना है
निराला। है कितना कोमल और चमकनेवाला।
गरीबदास- ठीक है आज, बैंगन की मज़ेदार रसीली सब्ज़ी बनाओ, हमें खिलाओ और
खुद भी खाओ।
(दोनों पीछे चले जाते हैं, गरीब दास एक तरफ बैठ जाता है, सूत्रधार वाद्य बजाते आगे आ जाते हैं। अमीर चंद बैंगन लेकर नाचता है और सब्जी बनाने का अभिनय करता है)
सूत्रधार-1 अमीरचंद ने सब्जी में डाली खूब सारी चिकनाई।
सूत्रधार-2 डाले तरह-तरह के मसाले फिर डाली मलाई।
सूत्रधार-1 सब्जी सेठ के मन को भाई। (गरीबदास खाना खाने का अभिनय करता है, खा-खाकर अपने पेच पर हाथ फेरता रहता है।)
सूत्रधार-2 भर गया पेट फिर भी खाता रहा सेठ।
सूत्रधार-1 खाना खाकर थोड़ी देर बाद अपने बिस्तर पर गया लेट। (मंच पर लगे बिस्तर पर लेट जाता है, एक पतली सी गद्दी या कपड़ा अपनी कमीज़ के अंदर लगा लेता है, दर्द होने का अभिनय करता है)
सूत्रधार-2 देखा बहुत फूल गया था उसका पेट।
सूत्रधार-1 हुआ दर्द, रहा त्रस्त लग गए उसको दस्त। (मंच से हटकर फिर सामने आता है और लेट जाता है।)
(कुछ समय बाद)
सूत्रधार-2 बहुत देर बाद उसे नींद आई।
(कुछ समय बाद)

सूत्रधार-1 सुबह उठते ही उसने अमीरचंद को आवाज लगाई।

गरीबदास- अमीरचंद, अमीरचंद, यहाँ इधर मेरे पास आओ।
अमीरचंद- सेठ जी, आया, मैं आया, (सेठ की ओर देखकर) क्या हुआ नींद नहीं आई।
आपकी तबियत तो खराब लगती है अपना हाल बतलाइए।
गरीबदास- कल तुमने क्या खिलाया, मैं रात भर सो नहीं पाया।
अमीरचंद- आपने अपना मनपसंद बैंगन बनवाया, वही बनाकर मैंने आपको
खिलाया।
गरीबदास- बैंगन, बैंगन मत कहो बेगुन कहो भाई। मैंने खाया, पेट ने सताया रात भर
नींद नहीं आई।
अमीरचंद- ठीक कहा है सरकार, बैंगन तो बेगुन ही होता, जो खाता, वही है रोता। अपनी सेहत है खोता। गुण नहीं इसमें एक, बात है किसी ने कही है
कितनी नेक।
गरीबदास- (गुस्से से, झल्लाते हुए) कल तो तुमने उसके कितने गुण थे गाए, आज
गिन-गिनकर दोष बताए। अगर तू कल ही यह बतलाता तो मैं बैंगन
क्यों खाता?
अमीरचंद- सेठ जी कल आपने बैंगन के गुण गाए, मैंने भी गुण ही बताए। आपने की
बुराई, तो मैं कैसे उसे अच्छा कहूँ भाई। मैंने आपकी हाँ-हाँ में हाँ ही मिलाई, मैं तो नौकर आपका हूँ, बैंगन का नहीं भाई।

दो गधों का भार--
(मंच पर अकबर, जहाँगीर और बीरबल टहलकदमी कर रहे हैं)
सूत्रधार-3 लगता है आपको कहानी पसंद आई।
सूत्रधार-4 तालियाँ जरा जोर से, सब लोग बजाइए भाई।
सूत्रधार-3 एक छोटी सी कहानी और है भाई।
(मंच पर अकबर, जहाँगीर और बीरबल आ जाते हैं और टहलकदमी करने लगते हैं)


सूत्रधार-4 बादशाह अकबर और उसके बेटे जहाँगीर का नाम तो सुना होगा।
सूत्रधार-3 उसके मंत्री बीरबल का भी आपको पता होगा।
सूत्रधार-4 वे तीनों एक दिन सुबह कहीं घूमने निकले।
सूत्रधार-3 आगे अकबर बीच में जहाँगीर और पीछे-पीछे बीरबल चले।
सूत्रधार-4 तीनों बहुत देर तक घूमते रहे, सूरज ऊपर चढ़ आया।
सूत्रधार-3 तीनों ने पहने थे कपड़े शाही, थे बहुत ही भारी।
सूत्रधार-4 ये कहानी आगे सुनो उनकी ही जबानी।

अकबर – सुनो बीरबल, गर्मी बहुत बढ़ गई है। ये शाही कपड़े पहनकर गर्मी तो लग
रही है, आगे बढ़ना भी मुश्किल हो गया है। (बीरबल के कंधे पर अपना चोगा रखते हुए) ऐसा करो हमारा यह चोगा तुम ही संभाल लो।
बीरबल – जी जहाँपनाह, जो हुक्म।
(तीनों कुछ देर तक ऐसे ही चलते रहते हैं। अकवर तो ठीक है पर जहाँगीर और बीरबल के चलने से ऐसा लगता है कि उन दोनों को गर्मी लग रही है।)
जहाँगीर- बीरबल, हमें भी गर्मी लग रही है। (उसके दूसरे कंधे पर अपना चोगा डालते हुए) हमारा चोगा भी आप ही संभाल लीजिए।

सूत्रधार-3 बीरबल को भी लग रही थी गर्मी।
सूत्रधार-4 उसने भी अपना चोगा था पहना ।
सूत्रधार-3 अकबर और जहाँगीर के चोगे भी बने थे उनका गहना।
सूत्रधार- कभी इस कंधे पर कभी उस कंधे पर।
सूत्रधार-4 कभी इस बाजू पर कभी उस बाजू पर दोनों को डालता।
सूत्रधार-3 धीर-धीरे वह अपना पसीना पोंछता और आगे चलता।
सूत्रधार-4 अकबर के मन में एक बात आई।
सूत्रधार-3 सोचा बीरबल की करूँ खिंचाई।

अकबर- (हँसते हुए- हा-हा-हा) बीरबल, तुम्हारे कंधे पर एक गधे का भार तो हो ही
गया होगा?
बीरबल- (मुस्कराते हुए) नहीं, जहाँपनाह, आप गलत कह रहे हैं, हमने एक नहीं दो-
दो गधों का भार संभाला है।
(अकबर और जहाँगीर सन्न से रह जाते हैं और बीरबल का मुँह देखते रह
जाते हैं।
सभी सूत्रधार एक साथ- देखी बीरबल की चतुराई, अकबर ने ली थी चुटकी कहा उनको कहा था गधा भाई, उसने तुरंत ही बातों-बातों में दे दी सफाई, पिता-पुत्र दोनों को ही एक साथ गधे की पदवी दे दी भाई।

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