रविवार, 2 मई 2010

लेटिंग द टेक्स्ट स्पीक, 2010

गीता शर्मा--

बुदापैश्ट, हंगरी, दिनांक 3 फरवरी— 5 फरवरी 2010.
यूरोप के भारत प्रेमी देशों में हंगरी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। भारतीय मूल के लोगों की संख्या अत्यल्प होने के बावजूद आम हंगारी लोगों के मन में भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रति बेहद लगाव है। उसी का परिणाम है कि सन् 1819 में चोमा द कोरोश जैसे भारत प्रेमी ने अनेक कठिनाइयों और असुविधाओं के बावजूद भारत की ओर प्रस्थान किया और 35 वर्ष वहाँ बिता कर भारतीय इतिहास-दृष्टि को एक नया आयाम दिया। दूसरे महत्वपूर्ण हंगारी भारतविद सर ऑरेल स्टॉइन ने संस्कृत के क्षेत्र में जो कार्य किया वह आज भी भारत- अध्ययन के क्षेत्र में मील का पत्थर है। भारत से गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर का हंगरी में आगमन हुआ परंतु उनके काव्य से यहाँ के साहित्य- प्रेमी पहले से ही परिचित थे। बालाटन में स्थित गुरुदेव की प्रतिमा और उनका कक्ष इस बात का प्रतीक है कि वे आज भी हंगारी जन-मानस में उतने ही आदरणीय हैं। हंगरी और भारत की सांस्कृतिक एकता को सुदृढ़ करने वाले भारतविदों की लंबी परंपरा आज भी हंगरी में विद्यमान है।
इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इत्वोस लोरांद विश्वविद्यालय (बुदापैश्ट,हंगरी) के भारत विद्या अध्ययन विभाग ने भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद एवं भारतीय दूतावास (हंगरी) के सहयोग से एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी का विषय था-लेटिंग द टेक्स्ट स्पीक (द इंपोरटेंस ऑफ टेक्स्टुअल स्टडीज इन कॉनटेंपरेरी इंडोलॉजी)।
इस अवसर पर भारत के उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री श्री आनंद शर्मा के अतिरिक्त हंगरी में भारत के राजदूत महामहिम श्री रंजीत राय, एल्ते विश्वविद्यालय के डीन डॉ. देजो तमाश, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की उप महानिदेशक सुश्री संगीता बहादुर, विभागाध्यक्षा डॉ. मारिया न्यजैशी, भारतीय दूतावास के सांस्कृतिक सचिव श्री वी.वी. मोहन एवं एल्ते में हिंदी के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ.प्रमोद कुमार शर्मा भी उपस्थित थे।
अपने उदघाटन-भाषण में श्री आनंद शर्मा ने भारत और हंगरी के प्रगाढ़ एवं पुराने संबंधों को याद करते हुए सन् 2011 में गुरुदेव की एक सौ पचासवीं जयंती हंगरी में भी मनाने की योजना पर विचार करने का आश्वासन दिया। हंगरी में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए एल्ते विश्वविद्यालय एवं मारिया नज्यैशी की प्रशंसा करते हुए श्री शर्मा ने इस दिशा में भारत सरकार के सहयोग की भी चर्चा की। एल्ते विश्वविद्यालय के डीन डॉ. तमाश ने विश्वविद्यालय का परिचय दिया और भारत सरकार को उसके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। उन्होने भविष्य में भी इस प्रकार की गोष्ठियों के आयोजन की आशा व्यक्त की। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की उप महानिदेशक सुश्री संगीता बहादुर ने परिषद की योजनाओं का परिचय देते हुए बताया कि परिषद यूरोप के अनेक देशों में इस प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों के लिए कटिबद्ध है। भारतीय विद्या अध्ययन के अंतर्गत आयोजित इन संगोष्ठियों का उद्देश्य इस क्षेत्र में हो रहे कार्यों से न केवल हिंदी एवं भारतीयों अपितु समस्त विश्व को परिचित कराना है। सुश्री बहादुर ने सरकार की सांस्कृतिक डिप्लोमैसी संबंधी नीतियों की भी चर्चा की। विभागाध्यक्ष डॉ. मारिया ने सबका धन्यवाद करते हुए भविष्य में भी भारत सरकार से ऐसे ही सहयोग की आशा व्यक्त की।
संगोष्ठी में भाग लेने वाले विद्वानों में पद्मभूषण श्री लोकेश चंद्रा के अतिरिक्त प्रो. माइकेल हॉन(मारबुर्ग), डॉ. जीन तुक शेविलाई(पेरिस), डॉ. इम्रै बंगा( ऑक्सफोर्ड एवं बुदापैश्ट), डॉ. जोविता क्रामर(म्यूनिख) प्रो. आर. के. मिश्रा (जम्मू), डॉ. गैरगै हिदास(बुदापैश्ट), डॉ. इवा दि क्लार्क(घेंट), डॉ. चाबा देस्जो(बुदापैश्ट एवं ऑक्सफोर्ड), डॉ. नीलिमा चितगोपेकर(दिल्ली), डॉ. हंस बॉकर(ग्रानिनजेन), श्री डेनियल बलोग(बुदापैश्ट), प्रो. निर्मला शर्मा(दिल्ली), श्री चाबा किस(बुदापैश्ट), डॉ. एस. ए. एस सरमा(पॉडिचेरी) एवं डॉ.पीटर बिश्कॉप (एडिनबर्ग) प्रमुख थे।
सेमीनार में पढ़े जा रहे पर्चों में जैन एवं बौद्ध धर्म तथा दर्शन, भारतीय स्थापत्य कला, मूर्तिकला से लेकर अपभ्रंश साहित्य, शैव साहित्य,योगिनियों से लेकर वैताल के स्वरूप तक तथा कबीर आदि से संबंधित हस्तलिखित पुस्तकों, पुरालेखों, शिलालेखों एवं ताम्रपत्रों से संबंधित जानकारियों का शोधात्मक विवेचन-विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। पूरे विश्व में भारतीय साहित्य, संस्कृति एवं दर्शन के क्षेत्र में हो रहे अत्यंत महत्वपूर्ण शोध- कार्यों की यह झलक बहुत अधिक ज्ञान -वर्धक तथा उत्साह-वर्धक थी।
तीसरे दिन समापन समारोह में महामहिम श्री रंजीत राय ने एल्ते विश्वविद्यलय एवं प्रतिभागी विद्वानों का धन्यवाद देते हुए इस प्रकार के सम्मेलनों के निरंतर आयोजन पर बल दिया। अंततः हंगरी के प्रसिद्ध भारतविद् प्रो. गेजा के धन्यवाद भाषण के साथ समारोह समाप्त हुआ।

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