रविवार, 2 मई 2010

हंगरी में हिंदी- प्रतिवेदन, मार्च 2010

डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा--

हंगरी में भारतीय विद्या विषय के अध्ययन-अध्यापन परंपरा की विधिवत शुरुआत 1873 ई. में ओत्वोश लोरांद विश्वविद्यालय में भारोपीय अध्ययन विभाग के अंतर्गत हुई थी।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संस्कृत अध्ययन-अध्यापन की पुनः नियमित रूप से शुरु कर इसका विकास करने का श्रेय विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष प्रो. तोत्तोशि चाबा को दिया जा सकता है।
हंगरी में हिंदी अध्ययन-अध्यापन का श्रीगणेश डॉ. दैबरैत्सैनी आर्पाद के प्रयासों से बीसवीं सदी के छठे दशक में हुआ था। इन्होंने विभाग में एक अंशकालिक अध्यापक के रूप में हिंदी अध्यापन का कार्य किया था।
हिंदी अध्ययन-अध्यापन की परंपरा नियमित रूपाकार देकर उसे पूर्ण रूप से विकसित कर वर्तमान स्वरूप देने का पूरा श्रेय डॉ. मारिया नेज्यैशी को जाता है। उन्होंने बीसवीं शताब्दी के नौवें दशक में हिंदी अध्यापन का कार्य शुरु किया था। उस समय विभाग में किसी भी भाषा में हिंदी की पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध नहीं थी, और तो और उस समय बुदापैश्त में हिंदी बोलने वालों की संख्या भी नहीं के बराबर थी।
1992 में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की ओर से ऐल्ते विश्वविद्यालय के भारोपीय अध्ययन विभाग में हिंदी के एक अतिथि प्रोफेसर की पीठ का सृजन किया गया और उपहारस्वरूप हिंदी पुस्तकें दी जाने लगीं। पीठ पर सर्वप्रथम नियुक्त हिंदी के जाने-माने साहित्यकार डॉ. असगर वजाहत ने हिंदी के साथ-साथ उर्दू पढ़ाने का कार्य प्रारंभ किया और मारिया नेज्यैशी के साथ मिलकर हिंदी अध्यापन की पाठ्यपुस्तक का निर्माण किया। इस परंपरा को डा. लक्ष्मण सिंह बिष्ट “बटरोही”, डा. रविप्रकाश गुप्ता, डॉ. उमाशंकर उपाध्याय ने आगे बढ़ाया। आजकल डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा आगे बढ़ा रहे हैं।
निरंतर उपहार स्वरूप मिलने वाली पुस्तकों के कारण विभाग का हिंदी पुस्तकालय यूरोप का एक समृद्ध पुस्तकालय बन गया है। विभाग आशा करता है कि उसे इस तरह की पुस्तकें भविष्य में भी मिलती रहेंगी।

जनवरी 2008 से भारोपीय अध्ययन विभाग

अध्ययन-अध्यापन
जनवरी 2008 से उच्च स्तर के छात्रों के सामान्य अध्यापन विषयों में- वार्तालाप, हिंदी उपन्यास, हिंदी नाटक, आधुनिक हिंदी कविता- के साथ-साथ कुछ नए तथा समकालीन विषयों - हिंदी मीडिया की भाषा, हंगेरियन से हिंदी में अनुवाद, निबंध लेखन, हिंदी कहानियों में स्त्री विमर्श तथा हिंदी समाज भाषाविज्ञान का अध्यापन विषयों में समावेश किया गया। हंगेरियन से हिंदी में अनुवाद अध्यापन का परिणाम यह निकला है कि छात्र प्रसिद्ध रचनाओं के साथ-साथ स्वरचित रचनाओं का भी हिंदी में अनुवाद करने लगे हैं। इस तरह की स्व अनूदित रचनाओं को हिंदी में सृजनात्मक लेखन (हंगेरियन लोगों द्वारा) की शुरुआत माना जा सकता है।
अतिथि प्राचार्य की सहायता से एक प्रयोग के तौर पर छात्रों को कंप्यूटर का हिंदी शिक्षण में प्रयोग, कंप्यूटर पर हिंदी में टंकण करना सिखाया जाने लगा है। अब कुछ छात्र अपनी रचनाएँ व अपना गृहकार्य हिंदी में टंकित करने लगे हैं।
विश्वविद्यालय में बी.ए. की कक्षाएँ प्रारंभ होने के बाद से विभाग के प्राध्यापक गण हिंदी व संस्कृत की सामूहिक कक्षाओं में भी अध्यापन का कार्य करते हैं। इन कक्षाओँ में छात्रों की संख्या 150-200 तक भी अधिक होती है।

विभाग में हिंदी अध्ययन करने वाले छात्रों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती दिखाई दे रही है। वर्ष 2008-09 में प्रथम वर्ष में 12 छात्रों ने हिंदी विषय चुना था तो इस वर्ष इनकी संख्या 20 थी।
अपनी अंतिम परीक्षा के लिए भी ये छात्र हिंदी भाषा, साहित्य, कला आदि से जुड़े विषयों पर हिंदी भाषा में पाँच निबंध तैयार करते हैं, जिनमें से किसी एक विषय पर निबंध लिखवाकर उनकी परीक्षा ली जाती है।

एक और उल्लेखनीय बात यह है कि विभाग के छात्र अपने अनुसंधान पत्र (डिप्लोमा या बी.ए. उपाधि प्राप्त करने के लिए आवश्यक) के लिए हिंदी भाषा और साहित्य से जुड़े विषयों का चयन करने लगे हैं। इस समय तीन छात्र हिंदी में शोधरत हैं।

अन्य गतिविधियाँ
गत वर्ष विश्वविद्यालय और विभाग के अनुरोध पर ऐल्ते विश्वविद्यालय के होम पेज में हिंदी भाषा को शामिल किया गया। इस पेज पर दी गई अंग्रेजी की सामग्री का डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा ने अनुवाद किया व उसे अपलोड भी किया।
वर्ष 2010 के प्रारंभ में मानविकी संकाय की परिचय पुस्तिका के हिंदी में अनुवाद का कार्य डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा ने संपन्न किया। इसे जल्दी ही प्रकाशित किया जाएगा तथा संकाय के वेब पेज पर स्थान दिया जाएगा।

अनुवाद
इस दौरान डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा ने हंगेरियन साहित्य में प्रसिद्ध फैरेंस मोलनार के किशोर उपन्यास पॉल उत्साई फियुक (पॉल स्ट्रीट के जाँबाज) और मोरित्स जिगमोंड के रोकोनोक (रिश्ते-नातेदार) का हिंदी में अनुवाद किया।
विभाग के पूर्व छात्र फिल्म क्लब द्वारा आयोजित व सामान्य रूप से प्रदर्शित होनेवाली हिंदी फिल्मों के संवादों का अनुवाद कार्य भी करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर आशुअनुवादक का कार्य भी करते हैं।
वर्ष 2008-2009 के छात्रों ने डॉ. मारिया नेज्यैशी के निर्देशन में भीष्म साहनी की अनेक कहानियों का हिंदी से हंगेरियन में अनुवाद कार्य किया।
भारोपीय विभाग की पूर्व छात्रा युदित बोर्बेय ने मनु-स्मृति का हंगेरियन भाषा में अनुवाद करने के उपरांत हरिशंकर परसाई की कुछ चुनिंदा व्यंग्य रचनाओं का हंगेरियन में अनुवाद किया है। ये दोनों ही रचनाएँ दूतावास की सहायता से एक परियोजना के तहत् प्रकाशित होने वाली हैं।

प्रयास-भित्ति पत्रिका
जनवरी 2009 से प्रारंभ हुए सत्र की एक विशेषता थी विभाग द्वारा अतिथि प्राचार्य डॉ. प्रमोद कुमार के संपादकत्व में भित्ति पत्रिका “प्रयास” का प्रारंभ। पत्रिका के अंकों की खासियत हैं छात्रों द्वारा लिखी गईं आधुनिक भाव बोध की हिंदी कविताएँ। इनमें अनुवाद, संस्मरण, यात्रा डायरी, कलाकृतियों व रेखाचित्रों को भी स्थान दिया गया है, इससे हंगारी भाषा के प्रसिद्ध कवियों की कविताओं और लघु कहानियों का छुटपुट रूप से अनुवाद होने में सहायता मिल रही है। अब छात्रों ने अपनी हंगेरियन रचनाओं का अनुवाद भी इसमें देना शुरु कर दिया है। पत्रिका को विभाग के वर्तमान व पूर्व अध्यापकों से पूरा सहयोग मिलता है, इस कारण से निरंतर इसके स्तर का सुधार हो रहा है।
वर्ष 2009 में इस पत्रिका के चार अंक निकाले गए। इन अंकों को दूतावास के सहयोग से प्रकाशित करने की योजना है।
प्रयास का पाँचवाँ अंक आजकल दीवार पर लगा हुआ है।
कुछ समय बाद यह पत्रिका इंटरनेट पर भी उपलब्ध होने लगेगी। इस कार्य की शुरुआत वेब पत्रिका अभिव्यक्ति की संपादिका श्रीमती पूर्णिमा वर्मन की सहायता से की जा रही है। इसका होमपेज तैयार हो गया है।
हिंदी की वेब पत्रिका अभिव्यक्ति की टीम ने इस वर्ष विभाग के सर्वश्रेष्ठ छात्र को पुरस्कृत करने का प्रस्ताव किया है। इस पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन अप्रैल के अंतिम सप्ताह में होने की आशा है।
डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा की प्रेरणा से विभाग के दो पूर्व छात्रों ने अपने भारत के अनुभवों के बारे में हिंदी में ब्लॉग लिखना प्रारंभ कर दिया है।

छात्रवृत्ति
भारत सरकार भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के माध्यम से विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करती है। पिछले पच्चीस साल से हंगरी के कम से कम दो छात्र प्रतिवर्ष, यह छात्रवृत्ति लेकर केंद्रीय हिंदी संस्थान में हिंदी का अध्ययन करने के लिए जाते हैं। 40 से भी अधिक छात्र इस योजना का लाभ उठा चुके हैं। इस सत्र में जो ऐल्ते और दूतावास की कक्षाओं में से एक-एक छात्र – श्री शागी पेतैर और श्री देनैश बिशोफ़ यह छात्रवृत्ति लेकर केद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा में अध्ययनरत हैं।
सन 2007 में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ने टैगोर फैलोशिप आरंभ की थी यह भारतीय विद्या अध्ययन विभाग के लिए बहुत ही उपयोगी साबित हो रही है। विभाग के ही एक पूर्व छात्र डॉ हिदाश गैर्गैय इस फैलोशिप के अंतर्गत शोध कार्य करने के साथ-साथ अध्यापन का कार्य भी करते हैं। इस अवधि में इनके अनेक शोध पत्र भी प्रकाशित हुए हैं।

शोधकार्य व शोधकार्य सहयोग व अन्य शैक्षिक संस्थाओं से सहयोग
मध्यकालीन हिंदी कवि तुलसीदास कृत कवितावली के पाठालोचन का कार्य भी विभाग में डॉ. इमरे बंघॉ के निर्देशन में छात्रों की सहायता से जारी है।
वर्ष 2008-2009 में बालाशी संस्थान में छात्रवृत्ति प्राप्त श्री संदीप तायल अपने अनुसंधान कार्य में डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा से सहयोग लेते रहे।
वर्ष 2009-2010 में ऐल्ते विश्वविद्यालय में छात्रवृत्ति प्राप्त श्री आशीष रस्तोगी अपने अनुसंधान कार्य में डॉ. मारिया नेज्यैशी और डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा से सहयोग ले रहे हैं।
इस वर्ष विभाग की अध्यक्षा डॉ. मारिया नेज्यैशी को एक विशेष सम्मान भी प्रदान किया गया। यह सम्मान उन्हें विश्व हिंदी सचिवालय की ओर से प्राप्त हुआ। उन्हें इस बार के विश्व हिंदी दिवस के आयोजन के अवसर मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था।
इरास्मुस (ERASMUS) योजना के तहत् विभाग के प्राध्यापक यूरोप के अन्य विश्वविद्यालयों में तथा वहाँ के प्राध्यापक विभाग में हिंदी-संस्कृत आदि से संबंधित विषयों पर व्याख्यान देने आते-जाते हैं। वियना विश्वविद्यालय के निमंत्रण पर विभाग के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा ने कंप्यूटर का हिंदी शिक्षण में उपयोग विषय पर भाषण दिया। इसी कार्यक्रम के तहत् डॉ. मारिया नेज्यैशी, डॉ. दैजो चाबा, डॉ. इत्सेश माते और डॉ. हिदाश गैर्गैय वियना विश्वविद्यालय जा चुके हैं। इसके अलावा डॉ. प्रमोद शर्मा क्राकोव और वेनिस विश्विद्यालय के प्राध्यापकों से चर्चा करने के लिए आधिकारिक यात्रा पर गए। उन्होंने सपिएंत्सिया विश्वविद्यालय, चिकैसैरदा, रोमानिया में आयोजित त्रिदिवसीय भक्ति कॉन्फ्रैंस में भी भाग लिया।

सिंतबर 2009 में मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. टी. वी. कट्टीमन्नी सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के तहत् विभाग में एक माह तक रहे।







दूतावास संचालित कक्षाएँ

अध्ययन-अध्यापन
भारतीय दूतावास के सहयोग से तीन (वर्ष 2009 से चार) स्तरों पर हिंदी अध्यापन की सांध्यकालीन कक्षाएँ पिछले अनेक वर्षों से नियमित रूप से चलती आ रही हैं। आजकल ये कक्षाएँ (गत दस वर्षों से) भी ऐल्ते विश्वविद्यालय के प्रांगण में आयोजित की जाती हैं। बुदापैश्त में सांस्कृतिक केंद्र स्थापित हो जाने के बाद ये कक्षाएँ पुनः दूतावास में स्थानांतरित हो जाएँगी। यह तो आप अच्छी तरह समझ सकते हैं कि सप्ताह में एक दिन, घंटे- दो घंटे पढ़कर किसी विदेशी भाषा को अच्छी तरह नहीं सीखा जा सकता, पर ये कक्षाएँ और इनमें होने वाली व्याख्यानमाला (भारतीय दर्शन, इतिहास, समाज, कला, खान-पान, पहनावा आदि से संबंधित विषय पर) हंगरीवासियों की हिंदी और भारतीय कला और संस्कृति के अध्ययन में रुचि को बढ़ाते हैं। इन कक्षाओं में अध्ययन करने वाले अनेक युवा छात्र प्रेरित होकर भारोपीय अध्ययन विभाग में नियमित तौर पर भारतीय अध्ययन के अंतर्गत हिंदी सीखना शुरु कर देते हैं। इन कक्षाओँ के छात्र भाषा के मौखिक प्रयोग में तो दक्षता हासिल नहीं कर पाते पर वे देवनागरी में लिख पढ़ सकते हैं। पिछले 18 वर्षों से चल रही इन कक्षाओं में लगभग 1500-1600 लोग हिंदी के साथ-साथ भारत और भारतीय संस्कृति से परिचय प्राप्त कर चुके हैं। इसके अंतर्गत आयोजित व्याख्यान माला के अंतर्गत अनेक हंगेरियन और भारतीय विद्वानों ने भारत की संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।

शिक्षणेतर गतिविधियाँ
इन कक्षाओं के छात्र प्रति वर्ष भारत के दो प्रमुख त्योहार दीवाली व होली मनाते हैं। इन कक्षाओं में पढ़नेवाले छात्र भारोपीय विभाग के छात्रों से मिलकर प्रतिवर्ष विश्व हिंदी दिवस (या हिंदी दिवस) के अवसर पर प्रसिद्ध हिंदी कवियों की कविताओं को पाठ करते हैं व एक या दो लघु नाटकों का मंचन करते हैं। गत वर्ष छात्रों ने स्वरचित हिंदी व हंगेरियन भाषा से हिंदी में अनूदित कविताओँ का भी पाठ किया था। 2008 में अकबर बीरबल की कहानी पर आधारित “दो गधों का भार” और “आपका दास हूँ, बैंगन का नहीं” 2009 में “मेहनत की कमाई” और एक हंगारी लोककथा “बुद्धिमान गड़रिया” के नाट्यरूपांतरों का मंचन किया गया था। इस वर्ष अर्थात् 2010 में फैरेंस मोलनार के उपन्यास के एक अंश “पुटी क्लब” के नाट्यरूपांतर का मंचन किया जा रहा है। उक्त सभी कहानियों का नाट्यरूपांतरण डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा ने किया था।
दूतावास की कक्षाओं व विभाग के छात्र यू. के. हिंदी समिति द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं। सर्वप्रथम स्थान प्राप्त करने वाला छात्र भारत की यात्रा पर भी जाता है। गत वर्ष इस योजना के तहत् सुश्री दाविद क्रिस्टी भारत की यात्रा पर गई थीं।

हंगरी में आयोजित हिंदी सम्मेलन व संगोष्ठियाँ

विभाग ने भारतीय दूतावास व आईसीसीआर, भारत सरकार के सहयोग से मार्च 2002 में हंगरी में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया था। इसके बाद वर्ष 2007 में भी एक अंतर्राष्ट्रीय भारतीय विद्या अध्ययन सम्मलेन का आयोजन किया गया था।

विश्व हिंदी दिवस 2008
मार्च 2008 में भारतीय दूतावास और ऐल्ते विश्व विद्यालय के भारोपीय अध्ययन विभाग ने सामूहिक रूप से विश्व हिंदी दिवस का आयोजन किया । जनवरी में विश्वविद्यालय में अवकाश होने के कारण यह कार्यक्रम मार्च में ही आयोजित किया जाता है। कार्यक्रम के प्रारंभ में हंगरी में भारत के राजदूत महामहिम श्री रंजीत राय ने भारत और हंगरी के संबंधों की लंबी परंपरा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हंगारी लोग हिंदी और भारत-प्रेमी हैं। उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री का विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर दिया गया संदेश भी पढ़ा। डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा ने हिंदी के विश्व भाषा बनने की प्रक्रिया के बारे में बताया। वर्ष 2007 में दूतावास द्वारा आयोजित कक्षाओँ ने पंद्रह वर्ष पूरे किए। डा. मारिया नेज्यैशी ने इस अवसर के लिए उनके इतिहास को दर्शाती एक सीडी जारी की। इसके बाद एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें काव्य-पाठ, नाटक, नृत्य आदि शामिल थे। पूर्व आयोजित प्रतियोगिताओं के विजेताओं को प्रथम सचिव ने पुरस्कार प्रदान किए।

संस्कृत कार्यशाला जुलाई 2008
भारोपीय अध्ययन विभाग की ओर से 21 जुलाई 2008 से 26 जुलाई 2008 तक कोसैग हंगरी में पाँचवे इंटरनेशनल इंटेंसिव संस्कृत समर रिट्रीट (एफ.आई.एस.एस.आर.) का आयोजन किया गया। इसका आयोजन भारोपीय अध्ययन विभाग ने किया। कार्यक्रम के प्रमुख संयोजक ऐल्ते विश्विद्यालय के संस्कृत वरिष्ठ प्राध्यापक श्री चाबा दैजो और हिंदी की विभागाध्यक्ष सुश्री मारिया नेज्यैशी थीं। इसमें विभिन्न देशों से आए लगभग 20 युवा संस्कृत विद्वानों एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया।

विश्व हिंदी दिवस-2009
14 मार्च 2009 को आयोजित हिंदी दिवस कार्यक्रम हंगरी में भारत के राजदूत महामहिम श्री रंजीत राय ने कहा वैश्विक मंदी के दौरान भारत ने विश्व को इससे निपटने की राह दिखाई। उन्होंने हंगरी में चल रहे हिंदी भाषा के अध्ययन-अध्यापन संबंधी कार्यों की सराहना की। उन्होंने विश्व हिंदी दिवस के अवसर दिया गया भारत के प्रधानमंत्री संदेश पढ़कर सुनाया। इस अवसर पर विभाग की भित्ति-पत्रिका ‘प्रयास’ (संपादक- डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा) का महामहिम द्वारा लोकार्पण किया गया। यह पत्रिका हंगरी में होनेवाला पहला प्रयास है।
इस अवसर पर एक हंगेरियन नृत्य समूह ने गणेश वंदना, भरत नाट्यम और दक्षिण भारत के लोक नृत्य प्रस्तुत किया। छात्रों ने दो लघु नाटिकाओं का मंचन किया। यह कार्यक्रम तकरीबन तीन घंटे तक चलता रहा। महामहिम द्वारा पुरस्कार वितरण के बाद, द्वितीय सचिव श्री मोहन के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हिंदी दिवस कार्यक्रम का समापन हुआ।

भित्ति पत्रिका के प्रथम अंक का अनावरण
महामहिम राजदूत महोदय के लोकापर्ण के पश्चात प्रयास के प्रथम अंक का अनावरण विभाग में किया गया इस अवसर पर मानविकी विभाग के संकाय के डीन के प्रतिनिधि के रूप में आए उप डीन ने विभाग के अध्यापकों व छात्रों की उपस्थिति में विभाग के एक सूचना पट पर प्रयास के प्रथम अंक का अनावरण किया।

हिंदी दिवस-2009
विभाग ने भारतीय दूतावास के सहयोग से सितंबर 2009 के अंतिम सप्ताह में हिंदी-दिवस का आयोजन किया। समारोह के मुख्य अतिथि हंगरी में भारत के राजदूत महामहिम श्री रंजीत राय थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. असगर वजाहत ने की। इस अवसर पर बोलते हुए राजदूत महोदय ने भारतीय भाषाओं की विविधता को रेखांकित करते हुए हिंदी के महत्व पर प्रकाश डाला। केंद्रीय हिंदी संस्थान से आए विजिटिंग प्रो. डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा ने छात्रों को विश्व हिंदी दिवस और हिंदी दिवस का अंतर बताते हुए उनके इतिहास के बारे में बताया।
इस अवसर पर छात्रों ने हिंदी गीतों पर मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किया। इस अवसर असगर वजाहत के प्रसिद्ध नाटक—जिन लाहौर नहीं वेख्या....-के एक अंश के मारिया नेज्यैशी कृत हंगेरियन अनुवाद का मंचन भी किया गया। छात्रों अभिनय बहुत ही भावपूर्ण था।
प्रो. वजाहत नें इन कक्षाओं के इतिहास और अपने अनुभवों का चर्चा की। भारतीय दूतावास से आए शिक्षा एवं संस्कृति सचिव श्री वी. वी. मोहन ने छात्रों के अभिनय और कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए किए गए डॉ. मारिया के प्रयत्नों के लिए उनका आभार व्यक्त किया।

प्रयास—3 का अनावरण
हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर विभाग की भित्ति-पत्रिका-- प्रयास— के तीसरे अंक का अनावरण प्रो. असगर वजाहत ने किया। इस अवसर पर उनके अतिरिक्त डॉ. मारिया, डॉ. प्रमोद शर्मा तथा मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. टी.वी. कट्टीमन्नी भी उपस्थित थे। प्रो. वजाहत ने छात्रों को हिंदी में लिखने के लिए प्रोत्साहित करते हुए उम्मीद जताई कि वे भविष्य में भी इस पत्रिका को जीवित रखेंगे। उन्होंने पत्रिका के लिए संपादक डॉ. शर्मा को बधाई दी। डॉ. मारिया ने भित्ति पत्रिका के तीसरे अंक के निकलने पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि विभाग से किसी हिंदी पत्रिका का इतनी सफलतापूर्वक निकलना स्वयं उनके लिए भी अविश्वसनीय है।

त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी- ‘लेटिंग द टेक्ट स्पीक’
भारोपीय विद्या अध्ययन विभाग, ने भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद एवं भारतीय दूतावास के सहयोग से 3 से 6 फरवरी 2010 तक एक त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी-‘लेटिंग द टेक्ट स्पीक’ (द इंपोर्टेंस ऑफ टेक्ट्चुअल स्टडीज़ इन कांटेंपरेरी इंडोलॉजी) का आयोजन किया। संगोष्ठी का उद्घाटन भारत सरकार के केंद्रीय उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री श्री आनंद शर्मा के भाषण से हुआ। उन्होंने अपने उदघाटन भाषण में भारत एवं हंगरी के प्रगाढ़ एवं पुराने संबंधों पर प्रकाश डालते हुए प्रसिद्ध हंगारी भारत-विदों चोमा द कोरोश एवं ऑरेल स्टाइन के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होने हंगरी की जनता के भारतीय संस्कृति और साहित्य-विषयक प्रेम की चर्चा करते हुए बालाटन नामक स्थान पर स्थित गुरुदेव रवींद्रनाथ की प्रतिमा एवं उनके स्मृति- भवन को भारत-हंगरी साहित्यिक सांस्कृतिक एकता का प्रतीक चिन्ह माना।
इस अवसर हंगरी में भारत के राजदूत श्री रंजीत राय, ऐल्ते विश्वविद्यालय के डीन डॉ. दैजो तमाश, भारतीय सांस्कृतिक संबध परिषद की सुश्री संगीता बहादुर, विभागाध्यक्षा एवं हिंदी की प्रसिद्ध विदुषी डॉ. मारिया नज्यैशी मंच पर उपस्थित थे।
इस संगोष्ठी में भारत सहित यूरोप के अनेक विद्वानों ने अपने प्रपत्र प्रस्तुत किए।

इस संगोष्ठी का संयोजन डॉ. दैजो चाबा ने किया था। उनके ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कार्यभार ग्रहण कर लेने के उपरांत डॉ. मारिया नेज्यैशी ने विभाग के अतिथि प्राचार्य डॉ. प्रमोद कुमार के सक्रिय रूप से सहयोग से इसे संपन्न करने का कार्य किया।




मारिया नेज्यैशी प्रमोद कुमार शर्मा
(विभागाध्यक्ष) (अतिथि प्राचार्य)

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