रविवार, 2 मई 2010

पुटी क्लब, पॉल स्ट्रीट के जाँबाज़, हिंदी दिवस पर प्रस्तुत एकांकी

फ़ेरेंस मोलनार के बाल उपन्यास- के लुइस रित्तेनबर्ग के अंग्रेजी अनुवाद – The Paul Street Boys, (कोरविना, बुदापैश्त 1994)के हिंदी अनुवाद, पॉल स्ट्रीट के जाँबाज़
अनुवादक- प्रमोद कुमार शर्मा

पुटी क्लब

दृश्य एक

(कक्षा का दृश्य)
(घंटी बजती है, अध्यापक अपना रजिस्टर चश्मा हैट आदि समेट रहे हैं, कक्षा से बाहर निकलने के लिए, छात्रों में खुसर-पुसर जारी है, एक छात्र, बोका ने दो उँगलियाँ हवा में उछाल दीं। कुछ छात्रों में खुशी की लहर दौड़ गई। छात्र उठने के लिए बेचैन थे, अचानक अध्यापक रुक जाता है।)

प्रो. रात्स्ज़- (अपनी घड़ी पर नज़र डालते हुए) सब लोग इंतजार करो।
(कक्षा में सन्नाटा छा गया)
प्रो. रात्स्ज़- (जेब में से कागज़ का एक टुकड़ा निकालकर, चश्मा ठीक करके पढ़ते हुए)- वैइस!
वैइस- (हड़बड़ाते हुए) ज् ज् जी, उपस्थित श्रीमान।
( छात्रों की खुसुर-पुसुर बंद, सभी छात्र सचेत हो जाते हैं)
प्रो. रात्स्ज़- रिहतैर!
रिहतैर- उपस्थित श्रीमान।
प्रो. रात्स्ज़- चैलै!
चैलै- उपस्थित श्रीमान।
प्रो. रात्स्ज़- कोल्नइ!
कोल्नइ- उपस्थित श्रीमान।
प्रो. रात्स्ज़- बरबाश!
बरबाश- उपस्थित श्रीमान।
प्रो. रात्स्ज़- लैसिक!
लैसिक- उपस्थित श्रीमान।
प्रो. रात्स्ज़- नैमैचैक!”
नैमैचैक- उपस्थित श्रीमान।
प्रो. रात्स्ज़- (अध्यापक पर्ची जेब रखते हुए) “लड़को तुम अभी घर नहीं जाओगे बल्कि मेरे पीछे अध्यापकों के कमरे में चलोगे। मैं तुम लोगों से कुछ बात करना चाहता हूँ।”
(अध्यापक कक्षा से बाहर निकल जाता है। कक्षा में हंगामा हो गया।)
एक छात्र- पता नहीं हमें क्यों बुलाया है?
दूसरा छात्र- पता नहीं वे हमारे साथ क्या करेंगे?
तीसरा छात्र- हम रुकें ही क्यों?
( ये बोलते हुए ये छात्र बोका के आसपास खड़े होते हैं।)
बोका- मुझे इस बारे में कुछ भी मालूम नहीं है। जैसा प्रो. रात्स्ज ने कहा है वैसा करो। मैं गलियारे में इंतजार करूँगा। (दर्शकों की तरफ मुँह करते हुए) साथियो, मुझे लगता है कि हमें अपनी बैठक तीन बजे तक स्थगित करनी पड़ेगी। इस अचानक सामने आई बाधा के कारण।
(जूतों की आवाज छात्र इधर उधर जाते हुए)

दूसरा दृश्य
( कमरे का दृश्य, कमरे के बीच में एक लंबी मेज रखी है एक तरफ एक कुर्सी)

एक लड़का – (इन छह लड़कों से उनका रास्ता रोकते हुए) क्या बात है? क्या तुम लोगों को सजा मिली है?
वैइस- (गर्व से) नहीं। (लड़का जल्दी से निकल जाता है, ये सब ईर्ष्या भरी नज़रों से उसे देखते हैं।)
(कुछ देर के इंतजार के बाद अध्यापक दरवाजा खोलने का अभिनय करते हुए)
प्रो. रात्स्ज़- अंदर आओ बच्चो। (आगे-आगे अध्यापक और पीछे छात्र चलने लगते हैं। बच्चे एक लंबी मेज़ के इर्द-गिर्द चुपचाप खड़े हो जाते हैं। अध्यापक मेज़ के एक सिरे पर कुर्सी लेकर बैठ जाता है और चारों ओर नज़र घुमाता है।
प्रो. रात्स्ज़- सब लोग आ गए क्या?
सब छात्र एक साथा- जी श्रीमान।
(घर की ओर जानेवाले बच्चों की हँसी-खुशी भरी आवाजों की रिकार्डिंग चल रही है।
प्रो. रात्स्ज़- एक बच्चा खिड़की बंद करो, बहुत शोर आ रहा है।
(कमरे में सन्नाटा है।)
प्रो. रात्स्ज़- मुझे पता चला है कि तुम लोगों ने क्लब जैसा कुछ बनाया है। मुझे उसका नाम पुटी क्लब या ऐसा ही कुछ बताया गया है। बताने वाले ने मुझे सदस्यों की सूची भी दी है। आप सब लोग उसके सदस्य हैं। मैंने सही कहा?
(सब छात्र शांत, सबने अपने सिर झुका लिए।)
प्रो. रात्स्ज़- चलो इसके बारे में तरतीब से बात करते हैं। सबसे पहले मुझे यह बताओ यह क्लब किसने बनाया है- क्योंकि तुम सब लोग अच्छी तरह से जानते हो मैंने क्लब वगैरह बनाने के लिए मना किया था। तो यह किसने बनाया?
(सब लोग शांत)
नैमैचैक- (मरी सी आवाज़ में) यह वैइस ने!
प्रो. रात्स्ज़- (वैइस पर कड़ी नज़र डालते हुए) वैइस! क्या तुम अपनी बात खुद नहीं कह सकते?
वैइस- (हकलाते हुए) ज् ज् जी, श्रीमान, मैं कह सकता हूँ।
प्रो. रात्स्ज़- (गुस्सा करते हुए) तो फिर क्यों नहीं कहा?
(वैइस घबराने वे अनजान होने का अभिनय करते हुए। अध्यापक सिगरेट सुलगाने व हवा में धुँए के छल्ले उड़ाने का अभिनय करते हुए)
प्रो. रात्स्ज़- ठीक है, आगे चलो, मान गया। पहले मुझे बताओ कि यह पुटी क्या बला है?
( वैइस पुटी की गेंद जेब में से निकालकर मेज़ पर रखता है।)
वैइस- बहुत धीमे स्वर में- यह पुटी है, सर।

(अध्यापक कुछ समय तक घूरने के बाद)
प्रो. रात्स्ज़- यह क्या हो सकता है?
वैइस- यह एक प्रकार का मिश्रण है जिसका प्रयोग शीशे का काम करने वाले खिड़कियों में शीशा लगाने के लिए करते हैं। शीशे का काम करने वाले इसे लगाते हैं और हम अपने नाखूनों से इसे खुरच खुरचकर निकाल लेते हैं।
प्रो. रात्स्ज़- क्या तुम मिलकर खुरचते हो?
वैइस- नहीं, श्रीमान यह तो क्लब की संपति है।
प्रो. रात्स्ज़- (प्रोफेसर की आँखें चौड़ी करते हुए) ऐसा कैसे?
वैइस- (थोड़ा साहस से, समझाते हुए) आप समझ लीजिए, श्रीमान, इसे क्लब के सभी सदस्य इकट्ठा करते हैं। क्लब के कार्यदल ने मुझे इसका संरक्षक बनाया है। मुझसे पहले कोल्नइ इसका संरक्षक था। वह खजांची भी था। उसने इसे सुखा दिया। उसने इसे कभी भी नहीं चबाया।
प्रो. रात्स्ज़- क्या इसे ऐसे ही करना होता है?
वैइस- जी, श्रीमान। अन्यथा यह सख्त हो जाएगी और हम इसे मसल नहीं पाएँगे। मैं इसे हर रोज चबाता था।
वैइस- तुम ही क्यों?
वैइस- क्योंकि यह नियमों में लिखा है कि अध्यक्ष कम से कम एक बार पुटी को चबाएगा, ताकि यह सूख न जाए।
(रोने लगता है। रोने वाले स्वर में) आजकल मैं ही अध्यक्ष हूँ।
(छात्रों के चेहरे पर तनाव दिखता है)
प्रो. रात्स्ज़- (कठोर स्वर में) तुम लोगों ने इतनी बड़ी गेंद बनाने के लिए इसे कहाँ से इकट्ठा किया?
(सब लोग पूरी तरह से शांत)
प्रो. रात्स्ज़- (कोल्नइ की तरफ देखते हुए) कोल्नइ तुम्हें यह कहाँ से मिली?
कोल्नइ- (हकलाते हुए, गलती मानने के स्वर में) श्रीमान आप समझ लीजिए। इसे हमारे पास पहले ही एक महीना हो गया है। मैंने एक हफ्ते तक इसे चबाया था। यह तब छोटी थी। इसका पहला भाग वैइस लाया था। उसके बाद ही हमने क्लब बनाया। एक दिन वह अपने पिता के साथ सवारी पर गया था। उसने गाड़ी की खिड़की से इसे खुरच लिया था। इससे उसकी उँगलियों से खून बहने लगा था। इसके बाद ऑडिटोरियम की खिड़की टूट गई थी। मैं वहाँ गया और पूरी दोपहर शीशा बनाने वाले के आने का इंतजार करता रहा। आने पर मैंने उससे बात की- उससे कुछ पुटी देने को कहा। पर उसने उत्तर नहीं दिया। वह उत्तर नहीं दे पाया क्योंकि उसकी अपनी चोंच पुटी से भरी थी।
प्रो. रात्स्ज़- (त्योरियाँ चढ़ाते हुए) यह कैसी बात कर रहे हो? चोंच तो केवल चिड़ियों की होती है!
कोल्नइ- ठीक है, तो उसका मुँह भरा था। वह भी इसे चबा रहा था। तब मैंने उससे कहा कि मुझे उसे खिड़की ठीक करते देखने दे। उसने पलक झपका कर कहा कि उसे कोई समस्या नहीं है। मैं उसे अंत तक देखता रहा। उसने काम खत्म किया और चला गया। जब वह चला गया, मैंने पुटी खुरच ली और ले आया। पर मैंने यह चोरी अपने नहीं... क्लब के लिए की....क्ल-ल-ल-ब-ब--- के लिए।
(कोल्नइ भी रोने लगता है)
प्रो. रात्स्ज़- रोओ मत।
वैइस- ( अपनी कमीज़ के कॉलर को मुँह में डाले) यह छोटी-छोटी बात पर रोने लगता है।
(कोल्नइ सुबकने का शानदार अभिनय करते अभिनय करता रहा)
वैइस- (फुसफुसाते हुए कोल्नइ से) अपना चीखना-चिल्लाना बंद करो!
(खुद भी रोने लगता है)
(प्रो. रात्स्ज़ सिगरेट का कश लेकर बच्चों पर दया भरी नज़र डालते हैं। चैले आगे आता है गर्व से भरकर चलता हुए अध्यापक के पास पहुँचता है)
चैले- (आत्मविश्वास से भरपूर स्वर में, अध्यापक से आँखे मिलाते हुए) श्रीमान मैं भी क्लब के लिए कुछ पुटी लाया
था।
प्रो. रात्स्ज़- कहाँ से?
चैले- घर से। मैंने चिड़ियों के नहाने का बर्तन तोड़ दिया। माँ ने उसकी मरम्मत की। मैंने साथ के साथ सारी पुटी ले ली। हालाँकि जब केनारी नहा रही थी तो सारा का सारा पानी निकल गया। पर इन चिड़ियों को नहाने की क्या जरूरत है? चिड़ियों को देखिए, वे कभी नहीं नहातीं, फिर भी वे गंदी नहीं होतीं।
प्रो. रात्स्ज़- (अपनी कुर्सी में आगे को झुककर टेढ़ी नजर डालते हुए) आज तुम चंचल हो रहे हो, पर मैं सबकी खबर
ले लूँगा! कोल्नइ जहाँ तुमने छोड़ा था वहाँ से शुरु करो!
कोल्नइ- (रोने के कारण भरी नाक साफ करके) मुझे आगे क्या कहना है?
प्रो. रात्स्ज़- बाकी पुटी कहाँ से आई?
कोल्नइ- क्यों, चैले ने अभी आपको बताया। ...क्लब ने एक बार मुझे कुछ पुटी खरीदने के लिए 60 क्रायत्जार दिए
थे।
प्रो. रात्स्ज़- (अस्वीकारने का सा अभिनय करते हुए) इसका मतलब है कि तुमने कुछ पैसे से भी खरीदी, ओह?
कोल्नइ- “नहीं सर, मेरे पिता एक डॉक्टर हैं। वे हर रोज़ बीमारों को देखने के लिए घोड़ागाड़ी से जाते हैं। एक दिन
वे मुझे अपने साथ ले गए। मैंने गाड़ी की खिड़की से कुछ पुटी खुरच ली। यह वास्तव में बहुत ही मुलायम
पुटी थी। क्लब ने मुझे दस-दस पैनी के छह सिक्के इसलिए देने का निर्णय लिया ताकि मैं उसी गाड़ी में
रोज घूम सकूँ। मैंने उसी दिन दोपहर को ऐसा किया। मैं शहर के अंत तक गया और चारों खिड़कियों से
सारी पुटी निकाल ली... इसके बाद मैं पैदल घर चला गया।”
प्रो. रात्स्ज़- ( कुछ याद करते हुए) यह वह दिन होना चाहिए जिस दिन मैं तुम्हें लुडोविन ऑफिसर्स प्रशिक्षण
महाविद्यालय के पास मिला था।
कोल्नइ- जी सर।
प्रो. रात्स्ज़- मैंने तुमसे बात करने की कोशिश की थी (थोड़ा रुककर) पर तुमने मेरी बात का उत्तर नहीं दिया था।
कोल्नइ- (सिर झुकाकर, उदासी भरे स्वर में) मैं नहीं कर पाया था (थोड़ा रुककर) मेरा मग पुटी से भरा था।
(छात्रों के चेहरे उदास हो गए। कोल्नइ रोने लगा। वैइस उत्तेजना में अपनी जैकेट के सिरों को कुतरने लगा) वैइस- (घबराकर व आँखों में आँसू भरकर) वह हमेशा रोने लगता है।
प्रो. रात्स्ज़- (कुर्सी से खड़े होकर अपना सिर हिलाते हुए कमरे में इधर-उधर चक्कर काटते हुए) एक छोटा सा प्यारा
सा क्लब। (गुस्से से) अध्यक्ष कौन था?
वैइस- मैं, सर।
प्रो. रात्स्ज़- खजांची?
वैइस- कोल्नइ।
प्रो. रात्स्ज़- (कोल्नइ की तरफ जाते हुए हाथ आगे बढ़ाकर) जो पैसा बचा है, मुझे दे दो।
कोल्नइ- (कोल्नइ जेब में हाथ डालकर सबसे पहले कुछ सिक्के, फिर डाक-टिकट, एक डाक का लिफाफा, आदि
निकाल कर रखता है) सब कुछ यहाँ है श्रीमान।
प्रो. रात्स्ज़- (पैसे गिनते हैं, चेहरा गंभीर हो जाता है) यह पैसे तुम्हें कहाँ से मिले?
कोल्नइ- चंदे से। हम लोग दस पैनी प्रति सप्ताह देते हैं।
प्रो. रात्स्ज़- यह धन किस काम के लिए होता है?
कोल्नइ- बस अपने आप को सक्षम बनाए रखने के लिए। वैइस ने अपना अध्यक्ष का वेतन लेने से मना कर दिया।
प्रो. रात्स्ज़- कितना होता है वह?”
कोल्नइ- पाँच पैनी प्रति सप्ताह। मैं डाक टिकट लाया था, बरबाश लिफाफा, और रिह्तैर रसीदी टिकट। उसके
पिताजी।
प्रो. रात्स्ज़- (बीच में ही टोकते हुए)- तुमने चुराई होगी, क्या नहीं ? रिह्तैर!
(रिह्तैर सिर झुकाए हुए अध्यापक की तरफ आता है)
प्रो. रात्स्ज़- क्या तुमने उन्हें चुराया?
(रिह्तैर ने स्वीकृति में सिर हिलाया। अध्यापक भी अपना सिर हिलाता रहता है)
प्रो. रात्स्ज़- (सिर हिलाते-हिलाते) कितनी बुरी बात है ! क्या करते हैं तुम्हारे पिता जी?
रिह्तैर- वह डॉ. ऐर्नो रिह्तैर हैं, कानूनी सलाहकार और नोटेरी। पर क्लब ने इसे ठीक किया था।
प्रो. रात्स्ज़- वह कैसे?
रिह्तैर- हुआ ऐसे। मैंने पिताजी की टिकट चुरा ली। मैं डर गया। क्लब ने मुझे एक क्राउन दिया कि मैं एक टिकट
और खरीदूँ। मैं उन्हें पिता के डेस्क में वापस रख दूँ। पर ऐसा करते हुए मैं पकड़ा गया। पकड़ा भी तब
गया जब मैं वापस रख रहा था न कि चोरी कर रहा था ... और उन्होंने... और ये मेरे गले पड़ गईं।
(अध्यापक रिह्तैर पर कठोर नज़र डालता है)
रिह्तैर- (थोडा सा शर्माते हुए) उन्होंने मेरी पिटाई की और थप्पड़ भी लगाया क्योंकि मैंने इन्हें वापस रख दिया
था। उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने ये कहाँ से लीं, पर मैं उन्हें बताना नहीं चाहता था। इसके लिए मुझे कुछ
और थप्पड़ मिले। तब मैंने कहा कि कोल्नइ ने मुझे दीं। उन्होंने कहा तुरंत ही ‘कोल्नइ को वापस कर दो,
उसने भी कहीं से इन्हें चुराया होगा।’ मैं कोल्नइ के पास वापस ले आया। इस तरह अब क्लब के पास दो टिकटें हैं।
प्रो. रात्स्ज़- (सोचते हुए) पर तुमने नई टिकट खरीदी ही क्यों, जबकि तुम पुरानी ही टिकट वापस कर सकते थे ?
कोल्नइ- नहीं, श्रीमान, हम ऐसा नहीं कर सकते थे, क्योंकि टिकट के पीछे क्लब की मोहर पहले ही लग चुकी थी।
प्रो. रात्स्ज़- इसका मतलब है कि तुम्हारे पास एक मोहर भी है ? (गरजते हुए) कहाँ है वह ?
कोल्नइ- बरबाश मोहर का संरक्षक है।
( बरबाश आगे बढ़ता है पर यमराज सी नज़र कोल्नइ पर डालने के बाद वह चुपचाप रबर की मोहर और
इंकपैड मेज़ पर रख देता है। अध्यापक मोहर की जाँच-पड़ताल करता है।
प्रो. रात्स्ज़- ओ, इस पर लिखा है, पुटी कलेक्टर्स क्लब, बुदापेश्त, फाउंडेड 1889।
(अध्यापक दबे स्वर में हँसता है, अपना सिर हिलाता है। यह देखकर बरबाश रबर की मोहर उठाने
के लिए आगे बढ़ता है।)
प्रो. रात्स्ज़- (उसे रोकते हुए, धमकाने वाले स्वर में) क्या करने जा रहे हो?
बरबाश- (हकलाते हुए) श्र श्र श्रीमान, मैंने इसे द द देने की बजाय, अपनी ज ज जान देकर भी र र रक्षा करने की
कसम खाई है।
प्रो. रात्स्ज़- (मोहर को अपनी जेब में ठूँसते हुए) सब लोग शांत!

बरबाश- त त तो ऐसे में आ आ आप चैले से झ झ झंडा भी लेना होगा।
प्रो. रात्स्ज़- इसका मतलब है कि झंडा भी है? (चैले की ओर जाते हुए) ठीक है वह भी दो।
(चैले अपनी जेब में हाथ डालता है और तार से बँधी एक छोटी सी झंडी निकालकर देता है।)
प्रो. रात्स्ज़- (झंडे को हाथ में लेते हुए) इस पर तो कुछ लिखा भी है। पुटी कलेक्टर्स क्लब, बुदापैश्त, फाउंडेड
1889। वी सोलेमली स्वीअर टू बी फ्री। (छात्रों को हड़काते हुए) हम्म, यह किसका दिमागी फितूर है
सोलेमन्ली को बिना एन के लिखना? किसका है यह फितूर?
(सब लोग शांत रहते हैं)
प्रो. रात्स्ज़- (चिल्लाते हुए) किसने किया है ऐसा?
चैले- (कुछ सोचते हुए) यह तो मेरी बहन ने लिखा है, सर।
(बड़ी मुश्किल से थूक निगलता है। उसके चेहरे पर संतोष का भाव है। बच्चे इधर-उधर की बातें बहुत अधिक करने लगते हैं।)
कोल्नइ- (गुस्से से) बरबाश का झंडे को धोखा देना मेरे विचार से ठीक नहीं है।
बरबाश- (मासूम सा विरोध करता है) तुम तो हमेशा ही मेरी टाँग खींचते रहते हो ! जब मुझसे मोहर ले ली गई तो
इसका मतलब क्लब समाप्त होने जैसा ही है।
प्रो. रात्स्ज़- शांत सब लोग! (सब चुप हो जाते हैं।) मैं, तुम सब को सीधा कर दूँगा। मैं घोषणा करता हूँ कि अब यह क्लब समाप्त। अब मैं किसी के बारे में यह न सुनूँ कि उसका ऐसी किसी चीज में हाथ है। शेष सब ठीक, अंक देते समय तुम्हारे व्यवहार को आधार बनाया जाएगा। वैइस का परिणाम सबसे बुरा होगा, क्योंकि वह तो मुखिया था।
वैइस- (आगे बढ़ते हुए) मुझे माफ कर दीजिए, सर, मेरा तो अध्यक्ष के रूप में आज आखिरी दिन था। हमने
अपनी आम सभा की बैठक आज बुलाई है जिसमें किसी दूसरे को नए अध्यक्ष के रूप में चुना जाना है।
बरबाश- (बहुत ही दबे स्वर में, कोल्नइ की तरफ इशारा करते हुए) हाँ, हाँ, कोल्नइ को नामित किया गया है।
प्रो. रात्स्ज़- मेरे लिए सब समान है, कल भी तुम सब लोग दो बजे तक यहीं रहोगे। मैं इस मज़ाक को यहीं रोक
देना चाहता हूँ। अब तुम सब लोग जा सकते हो!
सभी छात्र- (एक साथ) नमस्कार, सर!
( बाहर जाने के लिए इधर- उधर होने लगते हैं। वैइस चुपचाप पुटी उठाने के लिए उसके पास पहुँच जाता है। पर प्रोफेसर रात्स्ज़ की नजर उस पर पड़ जाती है)
प्रो. रात्स्ज़- (डॉँटकर आँखें दिखाते हुए) अपने हाथ उससे दूर ही रखो!
वैइस- (डरा हुआ सा देखता है) आप इसे हमें वापस नहीं देंगे सर?
प्रो. रात्स्ज़- नहीं। अच्छा तो यह होगा कि तुममें से किसी के पास बची है तो वह भी मुझे ही दे दो। यदि किसी के
पास थोड़ी सी भी पुटी मिली तो मुझसे बुरा कोई न होगा।
(एक लड़का लैसिक आगे आता है, अपने मुँह में से पुटी का एक टुकड़ा बाहर निकालकर भारी मन से और काँपती ऊँगलियों से उसे मेज़ पर रखी क्लब की पुटी पर चिपका देता है।
प्रो. रात्स्ज़- क्या तुम्हारे पास और है?
(वह अपना मुँह खोल देता है।)
प्रो. रात्स्ज़- (अपना हैट उठाते हुए) अब फिर से कोई भी क्लब बनाने का साहस मत करना ! अब बाहर निकलो
और अपने-अपने घर जाओ!
(सभी बच्चे चुपचाप बाहर निकल जाते हैं।)
लैसिक- नमस्कार, सर।
(अध्यापक बाहर निकल जाता है। छात्र एक दूसरे को निराशा से देखते हुए बाहर निकलते हैं)




दृश्य तीन
(गलियारे का दृश्य, बोक खड़ा है। सब छात्र उसके पास जाते हैं। कोल्नइ बोका से बात करने लगता है, बोका सिर हिलाता रहता है)
बोका- मैं तो बुरी तरह डर गया था, क्योंकि मैंने सोचा कि किसी मुखबिर ने मैदान के बारे में बता दिया।
नैमैचैक- (आगे आकर फुसफुसाते हुए) यहाँ देखो... जब अध्यापक जी तुम लोगों से प्रश्न पूछ रहे थे... मैं उस
खिड़की के पास खड़ा था... यह नई थी... और....”
( उसने खिड़की में से निकाली ताजा पुटी हाथ ऊपर उठाकर सबको दिखाई। वे सब उसे आश्चर्य से देख रहे थे।)
वैइस (चमकती हुई आँखों से) ठीक है, अब हमारे पास पुटी फिर से है, अब हमारा क्लब भी है ! अब मैदान में
पुरानी योजना के अनुसार ही अपनी बैठक करेंगे। पुटी क्लब जिंदाबाद।
सारे छात्र- पुटी क्लब जिंदाबाद।

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