रविवार, 2 मई 2010

मेहनत की कमाई, बुद्धिमान गड़रिया

नाट्य रूपांतरण - प्रमोद कुमार शर्मा--

(पहला दृश्य)
(दोनों सूत्रधारों का एक-एक करके प्रवेश, पहला घंटी बजाता है, दूसरा )
सूत्रधार1- सुनो भाई सुनो।
सूत्रधार2- कहानी एक परिवार की।
सूत्रधार1- एक था व्यापारी, नाम था उसका रमेश।
सूत्रधार2- सेठ की थी एक पत्नी बहुत ही प्यारी, नाम था उसका रामदुलारी।
सूत्रधार1- उनका था एक बेटा, रहता था हमेशा विस्तर में लेटा, नाम था उसका सुरेश।
सूत्रधार2- व्यापारी था अमीर, पैसे से मालामाल, करता रहता था मेहनत दिनरात।
सूत्रधार1- पत्नी थी उसकी दयालु, बेटे पर थी कृपालु।
सूत्रधार-2 बेटा था आलसी, नाकारा, पैसा उड़ाता मौज़ मनाता।
सूत्रधार-1 यह परिवार हो सकता है किसी देश का, किसी वेश का।
सूत्रधार-2 सुनो इसकी कहानी इसकी ही जबानी।

(दूसरा दृश्य)
(रमेश मेज़ पर बैठा है। सुरेश एक तरफ से मंच पर आता है।)
सुरेश- प्रणाम, पिताजी।
रमेश- खुश रहो। कहीं काम करने जा रहे हो क्या?
सुरेश- नहीं, पिताजी, मैं तो अपने दोस्तों के साथ फिल्म देखने जा रहा हूँ।
रमेश- कभी-कभी कुछ काम भी किया करो? और कुछ नहीं तो मेरे काम में ही हाथ
बँटा दिया करो।
सुरेश- पिताजी, कमाया है आपने इतना पैसा करके काम। मुझे तो करने दें आराम।
लाइए कुछ पैसा दे दीजिए।
रमेश- नहीं बेटा, पैसा नहीं मिलेगा। करोगे कुछ काम तो ही दूँगा दाम। अब ऐसा
करो। आज घर से बाहर जाओ, कुछ पैसा, कम से कम एक फोरिंट तो कमाकर लाओ।
सुरेश- (कुछ सोचते हुए) मंजूर है पिताजी। पर यदि मैं कमाकर लाउँगा तो क्या बीस
गुना आपसे भी पाऊँगा?
रमेश- ठीक है, ठीक है। तुम एक कमाकर लाओ तो चालीस मुझसे पाओ, पर एक तो
कम से कम कमाकर लाओ।
सुरेश- जाता हूँ पिताजी, कुछ कमाकर लाता हूँ और चालीस गुना आपसे पाता हूँ।

(तीसरा दृश्य)
(रामदुलारी सोफे पर सजी-सँवरी बैठी है, सुरेश प्रवेश करता है।)
सुरेश- माँ, मेरी प्यारी माँ, आज पिताजी ने जेबखर्च नहीं दिया, कहते हैं जितना
कमाकर लाओगे उसका चालीस गुना दूँगा। पर कुछ कमाकर लाओ।
रामदुलारी- ठीक है बेटा, जाओ काम करो और कुछ कमाकर ले आओ।
सुरेश- माँ, मेरी प्यारी माँ, मुझे तो कोई काम करना नहीं आता। मैं कैसे कोई काम
करूँगा। कुछ फोरिंट तुम ही दे दो न। मैं पिताजी से कह दूँगा कमाकर लाया हूँ।
रामदुलारी- नहीं बेटा, तुम जवान हो गए हो, तुम्हें काम करना चाहिए, तुम पिताजी
के पैसे पर ऐश कर रहे हो, सारा पैसा फिल्म देखने और घूमने फिरने में उड़ा देते हो। मैं नहीं दूँगी।
सुरेश- माँ, मेरी प्यारी माँ, (लाड़ जताते हुए) तुम मुझे आज बस सौ फोरिंट दे दो। मैं
कल जरूर कमाने जाऊँगा। दे, दे माँ नहीं तो मैं रोने लगूँगा।
रामदुलारी- न, न मेरे प्यारे बेटे रोना मत। मैं सौ रुपए दे दूँगी और पिताजी को भी
नहीं बताऊँगी।
(रामदुलारी 1000 फोरिंट का नोट सुरेश को दे देती है। सुरेश नोट लेकर निकल जाता है। रामदुलारी भी मंच पर एक तरफ चली जाती है।)
(चौथा दृश्य)

(शाम का समय, रमेश सोफे पर बैठा है। सुरेश मुस्कराते हुए मंच पर आता है।)
सुरेश- रमेश!रमेश! आज कुछ कमाया क्या?
रमेश- जी पिताजी, आज मैंने 1000 फोरिंट कमाए।
सुरेश- शाबाश! वाह मेरे बेटे, तुम तो बड़े कमाऊ पूत निकले।
रमेश- पिताजी, ये देखिए मेरा नोट।
सुरेश- मेरे कमाऊ बेटे ऐसा करो, इसे दूना में फैंक दो, कल थोड़ा ज्यादा कमाना। मैं तुम्हें पचास गुना दूँगा। पर अभी तुम्हें जेबखर्च नहीं मिलेगा।
रमेश- जी पिताजी।
(यह कहकर रमेश और सुरेश दोनों मंच पर अलग- अलग दिशा में चले जाते हैं।)
(पाँचवा दृश्य)

(सुबह का दृश्य, रामदुलारी सोफे पर बैठकर किताब पढ़ रही है, सुरेश प्रवेश करता है।)
सुरेश- माँ, मेरी प्यारी माँ, पिताजी ने आज भी जेबखर्च नहीं दिया, कहा है कमाकर
लाओ उसका पचास गुना दूँगा।
रामदुलारी- ठीक है बेटा, जाओ काम करो और कुछ कमाकर ले आओ।
सुरेश- माँ, मेरी प्यारी माँ, मुझे तो कोई काम करना नहीं आता। मैं कैसे कोई काम
करूँगा। कुछ फोरिंट तुम ही दे दो न। मैं पिताजी से कह दूँगा कमाकर लाया हूँ।
रामदुलारी- नहीं बेटा, तुम जवान हो गए हो, तुम्हें काम करना चाहिए, तुम पिताजी
के पैसे पर ऐश कर रहे हो, सारा पैसा इधर-उधर उड़ा देते हो। कल तो मैने इसलिए दे दिए थे कि तुम आज कमाकर लाओगे। आज मैं नहीं दूँगी।
सुरेश- माँ, मेरी प्यारी माँ, (लाड़ जताते हुए) तुम मुझे आज और बस 1000 फोरिंट
दे दो। मैं कल जरूर कमाने जाऊँगा। दे, दे माँ नहीं तो मैं रोने लगूँगा।
रामदुलारी- रो ले बेटा, रो ले। पर मैं कुछ नहीं दूँगी। घर से बाहर जा थोड़ी सी
मेहनत कर और पैसे कमाकर ला। तुझे पिताजी पचास गुना देगें। 100 कमाएगा तो 5000 पाएगा। रही कल की बात तो वह तो कभी नहीं आता कल ही रहता है। इसलिए आज से ही शुरु कर।
सुरेश- (नाराज स्वर में, रुआँसा सा) ठीक है माँ, तू भी पिताजी से मिल गई है। तुम
दोनों मेरे दुश्मन हो जेबखर्च नहीं देना चाहते। ठीक है मैं पैसे कमाकर ही घर आऊँगा।
(सुरेश और रामदुलारी भी मंच पर अलग-अलग दिशा में चले जाते हैं।)

(छठा दृश्य)
(रामदुलारी और रमेश सोफे पर बैठे बात कर रहे हैं। सुरेश मंच पर आता है।)
रमेश और रामदुलारी - आओ मेरे प्यारे बेटे।
सुरेश- माताजी पिताजी प्रणाम।
रमेश- आज कितने फोरिंट कमाए मेरे बेटे।
सुरेश- पिताजी आज तो मैं सिर्फ 500 फोरिंट ही कमा पाया।
रमेश- शाबाश, वाह मेरे बेटे। इन्हें भी दूना में फैंक आओ। कल जितना कमाओगे
उसका 100 गुना दूँगा।
सुरेश- नहीं पिताजी। इन्हें मैं दूना में नहीं फैंक सकता।
रमेश- क्यों बेटा, कल तो फैंक दिए थे।
सुरेश- कल मैंने मेहनत करके नहीं कमाए थे, माँ से लिए थे। आज मैंने मेहनत की
है। मैंने टेस्को में काम किया है।
रमेश- पर बेटा कल जो दूना में फैंका वह भी तो मेहनत की कमाई था। वह तेरे बाप
की मेहनत की कमाई था। उसे फैंकते बुरा नहीं लगा।
सुरेश- मुझे माफ कर दीजिए पिताजी अब मेरी समझ में आ गया है। जब अब
मेहनत से कमाते हैं तभी पैसे का महत्व पता चलता है। अब मैं पैसा बरबाद
नहीं करूँगा।

सूत्रधार1- लगता है यह बात आप सबकी समझ में आई।
सूत्रधार2- होती है क्या मेहनत की कमाई।
सूत्रधार1- पर आपने इतनी कम तालियाँ क्यों बजाईँ।
सूत्रधार2- हंगेरियन में (पर आपने इतनी कम तालियाँ क्यों बजाईँ।)
दोनों मिलकर- बजाओ-बजाओ तालियाँ बजाओ
(तालियों के बाद)
दोनों मिलकर- सब लोगों ने तालियाँ बजाईँ। अरे-अरे सुनो आप सबके लिए एक
हंगेरियन बुद्धिमान गड़रिए की कहानी भी लाए हैं भाई।
सूत्रधार1- अनुवाद गाबोर लीब ने किया ।
सूत्रधार2- प्रमोद ने नाटक का रूप दिया ।
सूत्रधार1- जानते है आप, बहुत पुरानी है बात।
सूत्रधार2- घूमता रहता था एक गड़रिया अपनी भेड़ों के साथ।
(मंच पर गड़रिये का प्रवेश)
सूत्रधार1- करो उससे कोई भी सवाल।
सूत्रधार2- देता था उत्तर तत्काल।
सूत्रधार1- समझदारी उसकी लोगों को भाने लगी।
सूत्रधार2- कहानी उसकी इधर-उधर छाने लगी।
सूत्रधार1- फैल रही थी चारों ओर उसकी कहानी।
सूत्रधार2- राजा ने पर यह बात न मानी।
सूत्रधार1- राजा था कुछ खास।
सूत्रधार2- करता था केवल आँखों देखी पर विश्वास।
सूत्रधार1- दरबारी करते गड़रिये के गुणों का बखान।
सूत्रधार2- राजा न देता उन पर ध्यान।
सूत्रधार1- दरबारी राजा को गड़रिए की समझदारी की बातें बताते।
सूत्रधार2- राजा कहता क्यों बार-बार मुझको हो सताते।
सूत्रधार1- राजा आ गया तंग, कहा अगर तुम्हार किस्सा है सच्चा।
सूत्रधार2- तो ये राजा लेगा उस लड़के की परीक्षा।
सूत्रधार1,2- आगे की कहानी सुनो उनकी जबानी।

(दृश्य 1)
(राजा का दरबार लगा है)
दरबारी1- महाराज, यह भेड़ चराने वाला लड़का बहुत ही समझदार है।
दरबारी2- जी महाराज, मैंने सुना उससे कोई भी प्रश्न पूछिए, बिल्कुल सही उत्तर देता
है।
दरबारी3- महाराज मैंने तो सुना है कि दो व्यापारी अपना झगड़ा लेकर उसके पास
गए थे, उसने उनकी समस्या भी सुलझा दी।
राजा- (ताली बजाता है, दरबान आता है) भेड़ चराने वाले उस बालक को दरबार में उपस्थित किया जाए। हम उसकी परीक्षा लेंगे। अगर वह सफल रहा तो हम उसे अपना लेंगे। अपने बेटे की तरह पालेंगे।
(दृश्य-2)
(दूर से बाँसुरी बजाने की आवाज आ रही है। कुछ दरबान इधर उधर ढूँढ़ रहे हैं।
कान लगाकर आवाज सुनते हैं)
दरबान1- उसकी बाँसुरी की मधुर आवाज सुनी।
दरबान2- हाँ सुनी मेरा मन मोह लिया।
दरबान1,2- यहीं-कहीं, आस-पास ही होगा वह समझदार बालक।
(दोनों चलकर गड़रिए के पास पहुँचते हैं। वहाँ उसका एक साथी भी है।)
दरबान1- नमस्कार।
गड़रिया- राम-राम। आप लोग किसे ढूँढ़ रहे हैं।
दरबान2- अरे भई हम तुम्हें ही ढूँढ़ रहे हैं। महाराज ने तुम्हें दरबार में बुलाया है।
गड़रिया- पर मैंने तो किसी का नुकसान नहीं किया।
दरबान1,2- ये तो हम नहीं जानते, हम तो आदेश का पालन कर रहे हैं।
गड़रिया- ठीक है मैं चलता हूँ। (अपने साथी से)- तुम मेरी भेड़ों का ध्यान रखना।
(सब लोग मंच से उतर जाते हैं।)

(दृश्य3)
(राजा अपने दरबार में विराजमान हैं। दरबानों के साथ लड़के का प्रवेश, तीनों राजा को प्रणाम करते हैं। दरबारी आपस में कानाफूसी करने लगते हैं।)

राजा- मैंने अपने दरबारियों से तुम्हारे बारे में बहुत सुना है। मुझे विश्वास नहीं हुआ,
इसलिए मैं परीक्षा लेना चाहता हूँ।
गड़रिया- जी महाराज।
राजा - मैं तुमसे तीन सवाल पूछूँगा। अगर तीनों का ठीक-ठीक जवाब दिया तो तुम
मेरे राजकुमारों की तरह यहीं राजभवन में रहोगे। लेकिन एक बार भी ग़लती
की तो अपनी भेड़ों के पास वापस भेज दिए जाओगे!
गड़रिया- जी महाराज, मेरे प्रभु, मुझे मंज़ूर है। मैं उत्तर देने की कोशिश करूँगा।
(दरबार शान्त हो गया)
राजा- मेरा पहला प्रश्न है- सागर में कितनी पानी की बूँदें हैं?
गड़रिया- (सोचते हुए) महाराज हम तो आपकी प्रजा हैं। हम सब आपके आदेश का
पालन करते हैं। मैं सिर्फ़ एक बात चाहता हूँ, आप दुनिया की सारी नदियों को
आदेश दीजिए कि वे रुक जाएँ, ताकि वे सागर में तब तक पानी न लाएँ जब
तक मैं गिन न लूँ कि उसमें कितनी बूँदें हैं।
राजा- (मुस्कराते हुए) ठीक है। बहुत अच्छा जवाब दिया तुमने। हम तुम्हारे उत्तर से
खुश हैं।
(गड़रिया झुककर तीन बार सलाम करता है)
गड़रिया- मेरा अहो भाग्य, महाराज को इस नाचीज़ गड़रिये का उत्तर पसंद आया।
राजा- देखें, इस बार तुम क्या करते हो? दूसरे सवाल का भी उत्तर दे पाओगे। मेरा
दूसरा सवाल है- आसमान में कितने तारे हैं ?
गड़रिया- महाराज मैं बता सकता हूँ। इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए मुझ काग़ज़
के कुछ बहुत बड़े-बड़े टुकड़े, कुछ पैंसिलें और कुछ लोगों की सहायता की
जरूरत है।
राजा- इस लड़के जो चाहिए दिया जाए। कुछ दरबारी सहायता करें।
(राजा सोच में डूबा है।)
गड़रिया (सहयोगी दरबारियों से)- आप लोग इन कागजों पर जितने बिंदु बना सकते
हैं बना दें।
(सभी दरबारियों ने बिंदुओं से अपने-अपने कागज को भर दिया। वह सारे
कागज़ राजा को देता है।)
गड़रिया- महाराज आसमान में उतने ही तारे हैं जितने बिंदु इन काग़ज़ों पर हैं, बस
आप उन्हें अपने दरबारियों से गिनवा लीजिए।
(दरबारियों के चेहरे पीले पड़ गए वे एक दूसरे की बगलें झाँकने लगे। राजा के
चेहरे की चिंता खत्म हो गई थी अब वह थोड़ा-थोड़ा हँसने लगे।)
राजा- (हँसते हुए) हमारे दो सवालों का उत्तर देकर तुमने हमारा दिल जीत लिया है
पर अभी तीसरा प्रश्न बचा हुआ है। यह बताओ कि अनंत-काल कितने मिनट
का होता है?
(गड़रिया सोच में पड़ गया, कुछ दरबारियों के चेहरे खुश थे तो कुछ पर लाचारी)
गड़रिया- यहाँ से बहुत दूर पोमेरानिया में हीरे का प्रसिद्ध पहाड़ है। वह इतना
विशाल है कि उसका चक्कर काटने वाला थक जाता है। उस पहाड़ पर
हर सौवें साल में एक छोटी-सी चिड़िया आती है और अपनी चोंच को उस पर घिस कर तेज़ करती है। जब पूरा पहाड़ इस काम से पूरा घिस जाएगा, तब अनंतकाल का पहला मिनट पूरा होगा।
राजा- (खुश होकर ताली बजाते हुए अपने सिंहासन से उतर कर गड़रिए के पास आते
हैं और उसे गले लगाते हैं) बहुत सही उत्तर है। तुम हमारी परीक्षा में सफल हो गए हो। कोई विद्वान भी इतनी ज़्यादा बुद्धिमानी से जवाब नहीं दे सकता था। आज से तुम यही मेरे महल में ही रहोगे। मैं सारी दुनिया के सामने तुम्हें अपने बेटे के रूप में गोद लेता हूँ।








































भाई। एक अकबर बीरबल का किस्सा अभी बचा है भाई।
सूत्रधार1- अकबर और बीरबल का नाम तो अब आप सब जानते हैं भाई।
सूत्रधार2- एक था शहनशाह दूसरा उसका मंत्री था भाई।
सूत्रधार1- अकबर के दरबार में मंत्री थे अनेक।
सूत्रधार2- पर बीरबर था सबसे चतुर, दयालु और नेक।
सूत्रधार1- होती थी कोई समस्या या अकबर जब कुछ पूछते थे भाई।
सूत्रधार2- हो जाते थे जब सब नाकाम, बीरबल आते थे तब काम।
दोनों सूत्रधार- एक बार की है बात,
घूम रहे थे अकबर बीरबल दूना के पास
मौसम था सर्दी का, कोई दरबारी नहीं था उनके साथ,
अकबर के मन में आई एक बात-----
(दृश्य एक)
अकबर- बीरबल, बीरबल, सर्दी के इस मौसम में दूना का पानी तो बहुत ठंडा होगा।
बीरबल- जी जनाब, दूना का पानी तो वैसे भी ठंडा होता है।
अकबर- क्या कोई इस ठंडे पानी में रात भर खड़ा रह सकता है?
बीरबल- जी जनाब, ढूढ़ने पर ऐसे आदमी मिल जाएँगे जो रात भर इस बर्फीले ठंडे
पानी में खड़े रहें।
अकबर- हमें विश्वास नहीं होता कि ऐसा कोई कर सकता है?
बीरबल- नहीं महाराज ऐसे अनेक आदमी होंगे।
अकबर- तुम ऐसा कोई एक आदमी ढूँढ़कर ले आओगे जो रात भर दूना के पानी में
खड़ा रहे तो हम उसे 100000 फोरिंट देंगे।
बीरबल- महाराज ईनाम कुछ कम है।
अकबर- ठीक है हम उसे 10000000 फोरिंट देंगे।
बीरबल- ठीक है महाराज, यह ईनाम तो काफी है। मैं एक ऐसे आदमी को शाम तक
ही ढूँढ़ लाऊँगा।
(दोनों मंच पर अलग अलग दिशा में चले जाते हैं।)

(दृश्य दो)
(अकबर अपने महल में टहल रहे हैं, दरबान का प्रवेश)
दरबान- महाराज, बीरबल आपसे मुलाकात करना चाहते हैं। उनके साथ एक आदमी
और भी है।
अकबर- ठीक है उन्हें आने दिया जाए।
(बीरबल और एक गरीब आदमी का प्रवेश, गरीब आदमी हाथ जोड़े खड़ा रहता है।)
बीरबल- महाराज, जैसा मैंने वायदा किया था, एक आदमी ढूँढ़ लिया है। यह रात भर
उस तालाब में खड़ा रहेगा। सुबह आप इसे ईनाम दे दीजिएगा।
अकबर- ठीक है बीरबल, हमें अपना वायदा याद है। (आदमी से) क्या तुम रात भर
दूना के ठंडे पानी में खड़े रहोगे?
आदमी- जी हुजूर।
अकबर- बीरबल, जब यह तालाब में घुस जाए तो दो सैनिक वहाँ खडे कर देना। वे
इस पर पहरा देंगे।
बीरबल- जी महाराज।

(दृश्य तीन)

(अकबर का दरबार, दो सैनिकों के साथ वही व्यक्ति खड़ा है)
अकबर- क्या तुम सचमुच रात भर दूना में खड़े रहे।
आदमी- जी महाराज, आप सैनिकों से पूछ सकते हैं।
दोनों सैनिक- जी महाराज, यह रात भर दूना में खड़ा रहा।
अकबर- (सोचते हुए) तुमने पूरी रात कैसे बिताई?
आदमी- मैं दूना में खड़ा आपके महल के एक दीपक को देखता रहा और रात बीत
गई।
अकबर- इसका मतलब तो यह हुआ कि उस दीपक की गर्मी तुम्हारे शरीर तक पहुँच
रही थी, जिसके कारण तुम्हें ठंड नहीं लगी। तुम ईनाम के हकदार नहीं हो. तुम्हें ईनाम नहीं मिलेगा।
(बीरबल ने कुछ नहीं कहा, बस सोचते रहे)
(दृश्य चार)
(बीरबल का घर, बीरबल इधर-उधर टहल रहे हैं और गरीब आदमी हाथ जोड़े खड़ा है)
आदमी- श्रीमान, मैं आपके कहने से पूरी रात दूना के ठंडे पानी में खड़ा रहा, पर
शहनशाह ने मुझे ईनाम नहीं दिया। आप दरबार में थे पर आपने भी कुछ नहीं कहा। यह तो अन्याय है। आप ही मुझे पुरस्कार दिलवाइए।
बीरबल- ठीक है। तुम थोड़ा सा ईनाम यह रख लो। महाराज वाला ईनाम दो-तीन दिन
में तुम्हारे घर पहुँच जाएगा।
(बीरबल एक छोटी सी थैली देता है, आदमी लेकर चला जाता है।)

सूत्रधार1 - अगले दिन बीरबल ने किया कुछ ऐसा काम
सोचा कर लिया जाए आराम।
सूत्रधार2 – उधर दरबार में अकबर हैं परेशान
बीरबल क्यों नहीं आया है हैरान
सूत्रधार1- दरबान, दरबान जाओ बीरबल को बुलाओ
वह होंगे आज शाम को हमारे मेहमान।
सूत्रधार2- दोड़ा गया दरबान, सुनाया राजा का फरमान।
सूत्रधार1- बीरबल ने दिया उत्तर, बना रहा हूँ पकवान।
खाने के बाद ही बनूँगा राजा का मेहमान।
सूत्रधार2- कुछ समय और बीता अकबर हुआ परेशान, हैरान।
सूत्रधार1- भेजा फिर से दरबान लेकर फरमान।
सूत्रधार2- बीरबल ने फिर दिया उत्तर, बना रहा हूँ पकवान।
खाने के बाद ही बनूँगा राजा का मेहमान।
सूत्रधार1- कुछ समय और बीता अकबर हुआ परेशान, हैरान।
सूत्रधार2- भेजा फिर से दरबान लेकर फरमान।
सूत्रधार1- बीरबल ने फिर दिया उत्तर वही, बना रहा हूँ पकवान।
खाने के बाद ही बनूँगा राजा का मेहमान।
सूत्रधार2- अकबर हो गया बहुत ही चिंता मग्न और परेशान,
बना रहा है बीरबल कौनसा अद्भुत पकवान?
जो नहीं बनना चाहता है मेरा मेहमान,
चलकर देखता हूँ खुद कैसे बन रहा पकवान।

(अकबर दरबान के साथ मंच पर टहलते हैं। कुछ देर बाद बीरबल दिखाई देते हैं। तीन लकड़ियों के बीच में एक बरतन बँधा है और उसके नीचे एक मोमबत्ती जल रही है। बीरबल पास में ही खड़े हुए हैं। यह देखकर दरबान हँसने लगा पर अकबर चिंतित हो गये।)
अकबर- बीरबल, हमने इतनी बार संदेश भेजे फिर भी तुम दरबार में नहीं आए। क्या
कारण है?
बीरबल- महाराज मैं खिचड़ी बना रहा था। मैंने दरबान से कहा था कि मैं खिचड़ी
खाकर आ जाऊँगा।
अकबर- पर तुम्हारी खिचड़ी है कहाँ?
बीरबल- महाराज वह रही ऊपर।
अकबर- (मुस्कराते हुए) पर वह इस मोमबत्ती की आग से कैसे बनेगी?
बीरबल- (बहुत ही विनम्र भाव से)बनेगी कैसे नहीं हुजूर? जब रात भर दूना में खड़े
आदमी को महल के दीपक की रोशनी से गर्मी मिल सकती है तो मोमबत्ती की
आग से खिचड़ी भी बन सकती है हुजूर।
अकबर- मेरी समझ में आ गया। तुम्हारी खिचड़ी बन गई समझो। दरबान कल दूना
वाले आदमी को दरबार में बुलाया जाए। हम उसका ईनाम उसे दे देंगे।
अब हमारे साथ चलो बीरबल, महल में भोजन हमारा और तुम्हारा इंतजार कर रहा है।
सूत्रधार दोनों- अगर समझ आ गई हो बीरबल की चतुराई
तो मिलकर खूब तालियाँ बजाओ भाई।

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