रविवार, 2 मई 2010

हंगरी में संस्कृत कार्यशाला

गीता शर्मा-
कोसैग-हंगरी
पाँचवे इंटरनेशनल इंटेंसिव संस्कृत समर रिट्रीट (एफ.आई.एस.एस.आर.) का आयोजन 21 जुलाई 2008 से 26 जुलाई 2008 तक कोज़ेग हंगरी में किया गया। इसका आयोजन इन्डोयूरोपियन स्टडीज़ भारोपीय अध्ययन विभाग, ओत्वोश लोरांद विश्विद्यालय बुदापेश्त (हंगरी) ने किया। कार्यक्रम के प्रमुख संयोजक ऐल्ते विश्विद्यालय के संस्कृत वरिष्ठ प्राध्यापक श्री चाबा देजौ और हिंदी की विभागाध्यक्ष सुश्री मारिया नेज्यैशी थीं। इस रिट्रीट में भाग लेने के लिए यूरोप के विभिन्न देशों से लगभग 20 युवा संस्कृत विद्वान एवं विद्यार्थी आए। कार्यशाला में संस्कृत की तीन पुस्तकों का पठन-पाठन के लिए चयन किया गया, जिनका अध्ययन तीन अलग-अलग सत्रों में किया जाता था। प्रथम सत्र की पुस्तक थी कुट्टनीमतम् (दामोदर गुप्त)। इस सत्र के संचालक चाबा देजौ और प्रोफेसर डोमिनिक गुडॉल थे। दूसरे सत्र की पुस्तक थी परमोक्षनिरासकारिकावृत्तिः (भट्ट रामकंठ)। सत्र के संचालक थे डॉ. एलेक्स वाटसन और डोमिनिक गुडॉल। तीसरे सत्र की पुस्तक थी वाराणसीमाहात्म्यम् इस सत्र के संचालक थे डॉ. पीटर बिशप।
ऐल्ते विशविद्यालय ने सन् 2002 में पहले इंटरनेशनल इंटेंसिव संस्कृत समर रिट्रीट (आई.एस.एस.आर.) का आयोजन रोमानिया में किया था। दूसरे समर रिट्रीट का आयोजन फ्रेंच स्कूल ऑफ एशियन स्टडीज़ (ई.एफ.ई.ओ.) ने पॉडिचेरी में, तीसरे का आयोजन पोलिश भारतविद्याविदों द्वारा पोलेंड में 2004 में और चौथा एक बार फिर 2007 में पॉंडिचेरी में किया गया।
इन संस्कृत समर रिट्रीट्स का उद्देश्य संस्कृत के काव्य, शास्त्र, पुराण एवं तंत्र साहित्य में से कुछ पुस्तकों का चयन करके उनका सामूहिक पठन-पाठन करना रहा है जिससे भारतीय साहित्य, दर्शन एवं धर्म संबंधी ज्ञान का प्रथम दृष्ट्या अनुभव प्राप्त किया जा सके। इसका संचालन भी परंपरागत् विश्वविद्यालयी शैली में न होकर नए रूप में होता है। प्रत्येक पुस्तकीय सत्र का संचालक एक ऐसा संस्कृत विद्वान (विद्यार्थी) होता है जो उस पुस्तक पर शोधरत है। हर एक यदि मौसम साथ देता है तो ये सत्र प्रकृति के सान्निध्य मे पेड़ों की छाया में भी आयोजित किए जाते है। प्रतिभागी अपने अपने लेपटॉप लेकर पेड़ों की छाया में बैठकर भी अध्ययन करते हैं। कोई एक प्रतिभागी निर्धारित पुस्तक से कुछ अंश पढ़ता है और उसपर अपने विचार व्यक्त करता है। सभी प्रतिभागी बराबर से अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं व शंकाएँ उठा सकते हैं।
इस आयोजन का एक बड़ा वैशिष्ट्य यह भी था कि यह बिना किसी सरकारी अनुदान के ही किया गया था। सभी प्रतिभागियों ने अपने संपूर्ण खर्च का वहन स्वयं ही किया था, जो उनके संस्कृत प्रेम और निष्ठा का परिचायक है।

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